हमेशा बहता रहे पानी
श्याम बिहारी श्यामल
दोस्त तो मशरूफ हैं कहां अब वक्त देते हैं
दुश्मनों का शुक्रिया जो अक्सर खबर लेते हैं
आती है अचानक झटके से जब-तब हमें हिचकी
सिद्दत से किसने नाम लिया हम जान लेते हैं
किसी भी तरह किसी के तो ज़ेहन में हम रहें
आमद-ओ-रफ्त यह दिली रिश्ता मान लेते हैं
ख्वाबों में ख्यालों में या दरहक़ीक़त साथ हो
सलूक-ए-रवानी को हम वफ़ा नाम देते हैं
श्यामल यह ख्वाहिश हमेशा बहता रहे पानी
ज़िन्दगी कह हम दरिया के हाथ थाम लेते हैं
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-02-2019) को "तम्बाकू दो त्याग" (चर्चा अंक-3243) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'