आंधियों को हवा करता रहा


यह जादू कोई समझता है क्या


श्याम बिहारी श्यामल 

जो पसंद नहीं कभी क़ुबूल नहीं, ऐसा भी कोई अड़ता है क्या
अपना रास्ता खुद ही रोके रहा, ऐसे भी कोई लड़ता है क्या 

दौर-ए-तरक्क़ी सामने थी, गुलदस्ता-ए-मौका लिए सुनहरा 
मंज़िल को नकारते रहे, इस तरह कहीं कोई पहुंचता है क्या

हमें याद रही छोटी विसात अपनी, पर जुनूं ने बहकाए रखा
आंधियों को हवा करता रहा, पत्ता अदना कुछ यूं करता है क्या 

ज़माने के तुर्रम-ओ-तीसमार जो, सारे दिमागी बीमार थे 
सबको सीधे ललकारता रहा, ऐसे भी कोई उलझता है क्या

उनकी ख़ास नज़र में अब तो सबसे बड़ा गुनाह था श्यामल होना 
वक़्त की कहानी दिलफरेब थी, यह जादू कोई समझता है क्या






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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-02-2019) को "समय-समय का फेर" (चर्चा अंक-3257) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 27 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. ज़माने के तुर्रम-ओ-तीसमार जो, सारे दिमागी बीमार थे
    सबको सीधे ललकारता रहा, ऐसे भी कोई उलझता है क्या
    बेहतरीन रचना....
    वाह!!!

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