हालात को बदलेगा ख़ास भरोसा
श्याम बिहारी श्यामल
नक़ाब-ए-शराफ़त की अब जो होड़ मची थी
ख्वाहिश-ए-अच्छाई यह निहायत सच्ची थी
क़ातिल को भी क़ुबूल कहां क़ातिल कहलाना
नई आमद-ए-शक्ल अभी उम्मीद बची थी
जो निहायत बुरा था इस कोशिश में लगा था
शिनाख्त बदले ज़ल्द जो क़तई न अच्छी थी
आसान तो नहीं लेकिन नामुमकिन भी कहां
बात पक्की होने लगी जो अभी कच्ची थी
श्यामल हालात को बदलेगा ख़ास भरोसा
बेशक़ीमती है यह चाह जो बची-खुची थी
जवाब देंहटाएंजो निहायत बुरा था इस कोशिश में लगा था
शिनाख्त बदले ज़ल्द जो क़तई न अच्छी थी
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