शातिर हैं चुप्पियां
श्याम बिहारी श्यामल
ऐसी कि जैसी सोची न हो कभी हमने-आपने
एक दिन ऐसी दुनिया होगी आंखों के सामने
महज़ इसलिए उतर कर पसर जाता है अंधेरा
क्योंकि उगता सूरज कभी नहीं देखा है शाम ने
नामालूम-सा रहता है वह जो शख्स गली में
सुना है तहलका मचा रखा है उसके नाम ने
शातिर हैं चुप्पियां जो चिपकी पड़ीं चिप्पी बनकर
हद है कभी ज़रा भी मुंह खोला नहीं हम्माम ने
मुर्दा से तनिक भी कम नहीं यहां मुतइनी दोस्तो
श्यामल को कहां पुरसुकूं किया कभी किसी काम ने
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