हालात-ओ-मंज़र पहेली की तरह
श्याम बिहारी श्यामल
देखने भर में कुछ ऐसे तो कुछ वैसे थे
क़ातिल सारे ही भीतर से एक जैसे थे
कुछ बदन तो कुछ करते थे दिमाग पर हमले
सबके बाद वह सरेआम ऊँचे कैसे थे
बातें किया करते चाहे जितनी भी ऊँची
ईमां-ओ-मज़हब सब उनके सिर्फ पैसे थे
तरक्की उनकी ही दिन दूनी रात चौगुनी
बाक़ी दुनिया में लोग जैसे के तैसे थे
श्यामल हालात-ओ-मंज़र पहेली की तरह
दलीलें हवा थीं सफ़र अब जैसे-तैसे थे
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