आकाश चढ़ रहा जो धुआं है मरदूद है
श्याम बिहारी श्यामल
चाँद-सूरज जिसके आंचल में मौजूद हैं
कैसे वह आसमान खालिस बे-वजूद है
क़ायदा-ए-क़ायनात भी क्या खूब कहिए
आकाश चढ़ रहा जो धुआं है मरदूद है
किंतु-परंतु लेकिन-वेकिन में रस ऐसा
बड़े-बड़े होंठ सिले सबके बावजूद हैं
किसी को कम करके आंकने की भूल न हो
दुनिया उन्होंने ही बदली जो बेखुद हैं
श्यामल वह लोग भी कैसे सांसत में रहे
आज जो अनगिन आखों में हैं माबूद हैं
वाह...गजब 👌👌
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