ज़िंदगी ने अब तो सीख लिया था रंग बदलना
श्याम बिहारी श्यामल
हालात से क़रार था या नज़ारा-ए-हार था
आखिर क्या था यहां जो सन्नाटा बेशुमार था
बेसब्री-ओ-बेक़रारी न थी बेशक़ सिर्फ यहीं
मंज़िल को भी हमारे क़दमों का इंतजार था
ज़िंदगी ने अब तो सीख लिया था रंग बदलना
हर लम्हा अफसाना हर शख्स यहां किरदार था
चंद सिरफिरों के लिए प्यार था नायाब बेमिसाल
कुछ के लिए केवल इस्तेमाल-ए-हथियार था
श्यामल यह कैसी तिजारती दुनिया थी सामने
सियासत से अकीदत तक सब तो कारोबार था
बेसब्री-ओ-बेक़रारी न थी बेशक़ सिर्फ यहीं
जवाब देंहटाएंमंज़िल को भी हमारे क़दमों का इंतजार थाई...गजब ! वाह