पत्थरों ने आगे बढ़ विजय- गीत गाया
श्याम बिहारी श्यामल
उसूलों ने गच्चा यूं ही नहीं खाया है
कुर्सी की नस्ल अलग है वह चौपाया है
बैठते ही दिमाग उलट दे रहा है तख्त
कुर्सी की नस्ल अलग है वह चौपाया है
बैठते ही दिमाग उलट दे रहा है तख्त
कौन भला कभी कहीं इससे बच पाया है
तारीख के पास इसके किस्से बेशुमार
दरिन्दों ने सल्तनत को कैसे हथियाया है
हौसला-ए-आदम जब तोड़ देता है दम
पत्थरों ने आगे बढ़ विजय- गीत गाया है
श्यामल दुश्वारी से आमदरफ्त नहीं नया
इसके बाद भी हमें हर क़दम आज़माया है
तारीख के पास इसके किस्से बेशुमार
दरिन्दों ने सल्तनत को कैसे हथियाया है
हौसला-ए-आदम जब तोड़ देता है दम
पत्थरों ने आगे बढ़ विजय- गीत गाया है
श्यामल दुश्वारी से आमदरफ्त नहीं नया
इसके बाद भी हमें हर क़दम आज़माया है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (03-12-2018) को "द्वार पर किसानों की गुहार" (चर्चा अंक-3174) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी