सभी समझ रहे हैं यह खेल उनका
श्याम बिहारी श्यामल
सत्य की हालत कमज़ोर बता रहे हैं वो
माहौल-ए-फरेब मुफीद बना रहे हैं वो
शातिर कितने बड़े यह हो रहा जगज़ाहिर
चोरी करके खुद चोर-चोर चिल्ला रहे वो
वह चाह रहे हम मान लें हालात बदतर
सामने तभी तो भ्रमजाल फैला रहे वो
सभी समझ रहे हैं यह खेल उनका पूरा
इल्म-ए-ज़माना खुद समझ नहीं पा रहे वो
श्यामल शाखों पर लदे हैं जाहिल परिन्दे
हाल-ए-गुलिस्तां बद से बदतर बना रहे वो
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