हुआ करे चमकता कोई हिमालय सफ़ेदपोश
श्याम बिहारी श्यामल
इत्तफाक़ इससे कहिए कितना रखते हैं आप
जो सिर्फ डसता है हम तो उसे कहते हैं सांप
जहां भी होते हम कहीं काम-काज में मशगूल
फ़ण घात लगाए छुपा मौके खोजता चुपचाप
उसे लगता हो नज़्म-ओ-गज़ल हवाई-सी चीज़
कैसी भी बुनियाद हिला दे कुछ यूं यह आलाप
हुआ करे चमकता कोई हिमालय सफ़ेदपोश
उसे पानी कर दे ऐसा यह हमारा है ताप
श्यामल इंसाफ-ए-वक़्त नज़रंदाज़ कौन करे
मुंसिफ़ के पास दर्ज है सभी के गले की नाप
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (24-12-2018) को हनुमान जी की जाति (चर्चा अंक-3195) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक