उल्फत अब भी ज़ादू की छड़ी
श्याम बिहारी श्यामल
अपने-आप में दुनिया चाहे जितनी हो बड़ी
दिल के सामने आज भी सिर झुकाये वह खड़ी
पल-पल जहां बदल रहे हैं मंज़र-ओ-हालात
कुछ तो बात है उल्फत अब भी ज़ादू की छड़ी
बात-बात में सुलगने लगता अजब यह दिमाग
दिलदेश में तो बारहमासा सावन की झड़ी
इत्मीनान से गढता है वह शक़्ल-ओ-सूरत
वक़्त के हाथ यहां कोई गड़बड़ी न हड़बड़ी
श्यामल एक ज़माने से ज़माने को इल्हाम
यूं ही नहीं ऊंचाई पर मुस्कान एक अड़ी
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