कुछ लिखना अब तो महज़ जुआ है
श्याम बिहारी श्यामल
ज़ाहिरन ऊपर तक यूं ही नहीं धुआं-धुआं है
चिन्गारियों का लगता है कहीं असर हुआ है
अश्क जैसे छलक पड़े कोई बात है ज़रूर
सूरत-ए-हाल ने हो न हो ज़िगर को छुआ है
ऐसे लोग बहुत कम है जिन्हें पच रही गज़ल
हमें पता है कुछ लिखना अब तो महज़ जुआ है
जिसके होने से गुलशन के वज़ूद को खतरा
पता चला गुलों का वही अब नया पहरुआ है
अहसान भूल आंखें दिखाता वह खामख्वाह
श्यामल अभी तक सलामत यह आपकी दुआ है
चिन्गारियों का लगता है कहीं असर हुआ है
अश्क जैसे छलक पड़े कोई बात है ज़रूर
सूरत-ए-हाल ने हो न हो ज़िगर को छुआ है
ऐसे लोग बहुत कम है जिन्हें पच रही गज़ल
हमें पता है कुछ लिखना अब तो महज़ जुआ है
जिसके होने से गुलशन के वज़ूद को खतरा
पता चला गुलों का वही अब नया पहरुआ है
अहसान भूल आंखें दिखाता वह खामख्वाह
श्यामल अभी तक सलामत यह आपकी दुआ है
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