क्या वह ज़द में लेगा हमारे ज़ज्बात
श्याम बिहारी श्यामल
दोस्त दूर हैं हो पाती कहां उनसे मुलाक़ात
दुश्मन से चाय-काफ़ी पर होती है रोज़ बात
जिस दिन दिल खोल कर हँसता है गज़ब करता है
हमारी राह में उस दिन तो कुछ और मुश्किलात
अंदाज़-ए-खैर-खबर में उसके गज़ब सगापन
क़िस्सा-ए-सयानापन है उससे यह ताल्लुक़ात
वह जानता है कब कितना मिलाना है कौन रंग
क्या इस तरह ज़द में लेगा वह हमारे ज़ज्बात
श्यामल क़लम न कागज़ या न ही चमाचम अल्फाज़
गज़ल लिख रहे हैं खुद वक़्त के ज़ख्मी सवालात
वाह 👌👌
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