ईमानदार शख्स पर हंस रही थी भीड़
श्याम बिहारी श्यामल
शातिर जो खुलेआम क़त्लेआम मचाते थे
हैरत है वही कैसे वाहवाही पाते थे
सबको पता थी उनकी खूनी हक़ीक़त पूरी
लोग फ़िर कैसे उनके नज़दीक भी जाते थे
अजीब दरपेश था यह वक़्त-ए-खरीद फरोख्त
दिन को रात बताने की क़ीमत वह पाते थे
उस ईमानदार शख्स पर हंस रही थी भीड़
पास ही खडे ज़हीन मंद-मंद मुस्काते थे
श्यामल यह खोज-खबर अब ज़रूरत-ए-वक़्त है
दौर मुर्दा क्यों जहां हम मंज़र यह पाते थे
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें