क्या मुकाम-ए-इंसां जो नज़र न आता था


विजेता गिरा था खुमार-ए-जश्न में


श्याम बिहारी श्यामल 

हर घूंट उसे सिर्फ भड़काता ही जाता था

प्यास का बेचैनी से यह कैसा नाता था



ज़मीं से आस्मां तक रौंदे जा रहे दिन-रात

क्या मुकाम-ए-इंसां जो नज़र न आता था



लंबा-ओ-मजबूत हुआ तो डंडा बन गया 

फटा हुआ नन्हा वह बाँसुरी कहलाता था



विजेता कब से गिरा था खुमार-ए-जश्न में

हारे शख्स के सुरों पर ज़हां लहराता था



शक्ल-ओ-अंदाज़ की नक़ल तो कर ली मुमकिन 

श्यामल जो बना था वह कहां मुस्कुराता था







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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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