वक़्त उस्ताद औ' वही तालिब था
श्याम बिहारी श्यामल
क़ोशिश नहीं कि जो हो मुनासिब हो
ज़िद केवल कि हर चीज़ मुताबिक हो
इसकी उसकी किसी की कहां फिक्र
साज़िश कि दरिया का रुख जानिब हो
हर क़दम पर ज़बानी जमाखर्ची
चाह नहीं कि कोई खुदक़ातिब हो
वह चाहते हवा में रहें सवाल
किस्सा-ए-क़ामयाबी जाज़िब१ है
श्यामल होना न होना था ही क्या
वक़्त उस्ताद औ' वही तालिब था
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