बेचैनी जो उस तरह बेचैन भी नहीं
श्याम बिहारी श्यामल
जो है सो यह रौनक-ए-अंदाज़-ओ-अदा है
दिखे जो भी दरहक़ीक़त यही ग़ज़लकदा है
एक बेचैनी जो उस तरह बेचैन भी नहीं
तार सांसों के छूता दर्द यह अलहदा है
दूर-दूर तक कहीं कोई परिंदा यहां नहीं
चहचहाहटें यह किस बेखुदी की सदा है
आतिश-ए-गुल यह जला दे न कहीं सारा ज़हां
दिखता है उन्हें गाछ गुलाबों से लदा है
श्यामल तेज़ कर अभी और ताल्लुक़-ए-अल्फाज़
सफ्ह माक़ूल-ए-नग्म यह निहायत सफा है
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