चश्म-ओ-चिराग सवालों से गुम
श्याम बिहारी श्यामल
नक्श-ए-ज़हां कुछ इस क़दर बारफ्तार बदल रहा था
अंदाज़-ए-तरक्क़ी यह शक़-ओ-सुब्हां उगल रहा था
आस्मान रौंद कर आए तो ज़ुनूं हो चला बेलगाम
कारवां-ए-बेकाबू ख्यालात बेहद मचल रहा था
अब अगली क़ामयाबी कौन और उसका फिर असर क्या
एक डर था जो शब-ओ-रोज़ फण काढ़े टहल रहा था
वक़्त-ओ-फ़ासले अब किसी हद तक हो चुके थे क़ाबू
महज़ एक दिल जो अपने रंग वही राह चल रहा था
श्यामल दुनिया को अभी क्या रंग क्या ढंग देखने हैं
चश्म-ओ-चिराग सवालों से गुम चुपचाप जल रहा था
गनीमत कि दिल अब भी धड़क रहा था
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