मशहूर क़लम पर यह स्याही कैसी
श्याम बिहारी श्यामल
आओ रंज़-ओ-गम करें तुरंत एक तरफ
जोड़ें दिल-ए-ज़बान से नया एक हरफ
जिसे लगता हो कि दास्तान बदलेगी नहीं
हम इसी वक़्त बदल देते हैं एक ज़रफ
पता है हमें अब किससे क्या मिलने वाला
यह जंग है इसमें क्या उम्मीद-ए-अतफ़
लगातार होते रहे हैं अल्फाज़ ज़ख़्मी
दोस्तो, ज़ालिम है सारा रिवाज़-ए-हलफ
श्यामल मशहूर क़लम पर यह स्याही कैसी
तारीख़ है या मुर्दा कोई स्याह बरफ
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हर्फ़ = अक्षर
ज़रफ = ज़र्फ़, पात्र
अतफ़ = अत्फ़, दया, प्रेम, कृपा, भेंट
हलफ़ = शपथ
बरफ = बर्फ
जवाब देंहटाएंआओ रंज़-ओ-गम करें तुरंत एक तरफ
जोड़ें दिल-ए-ज़बान से नया एक हरफ...क्या बात है 👌👌लाजवाब
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-03-2019) को "गीत खुशी के गाते हैं" (चर्चा अंक-3283) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर ग़ज़ल।
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