ज़हां अल्फाज़ी ज़िंदगी हवा-हवाई
श्याम बिहारी श्यामल
बातों में जिनकी मिसालें हैं औ' दुहाई है
आमाल में झलक कहां इनकी कभी आई है
आईना दिखाता घूम रहा जो शख्स सबको
बार-बार शक्ल उसकी अलग पड़ी दिखाई है
ख़तरनाक है उनकी तक़रीर को अब तो सुनना
जिसने यकीं किया फ़ौरन मात यहां खाई है
सलाहियत नहीं यह तो दोनों की चाल शातिर
सटकर जो बैठे, उनमें पुरानी लड़ाई है
श्यामल ग़ज़ब चर्चा-ए-फ़लसफ़ा है यहां-वहां
ज़हां अल्फाज़ी है, ज़िंदगी हवा-हवाई है
बहुत सुन्दर
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