मुंह से बात अमन की, सरहद पर रोज़ गोले
श्याम बिहारी श्यामल
खून पी रहा जो तुरंत उसे खत्म क्यों न करें
खटमल-ओ-मच्छरों से भला हम मोह क्यों करें
लात पड़ते ही जागती है अक्ल लतखोर की
साबित हुआ फिर नज़रंदाज़ इसे अब क्यों करें
मुंह से बात अमन की, सरहद पर रोज़ गोले
इस दोगले पड़ोसी पर हम इनायत क्यों करें
अक्ल न औक़ात औ' उल्टे ऐन्ठन भी कम नहीं
इस खतरनाक़ ज़ाहिल को मटियामेट अब करें
जो हमारे जां-ओ-मुल्क़ का जगज़ाहिर दुश्मन
श्यामल नामुमकिन बर्दाश्त उसे पल-भर भी करें
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