वक्त बवंडर कहां फुर्सत देता
श्याम बिहारी श्यामल
रात भर ज़ार-ज़ार रोई है शब
सुबह अश्क़पाक़ अभी हुई है तब
हवाएं चश्मदीद हैं अज़ाब१ की
सच खुला है आंखें धोई है जब
मौजों ने खेला किया जी भरके
क़श्ती औचक ही डुबोई है अब
वक्त बवंडर कहां फुर्सत देता
ज़िंदगी पल-भर भी सोई है कब
श्यामल हर नाकामी अपनी जगह
उम्मीदें कब कहां खोई हैं सब
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१. अज़ाब = पीड़ा
वक्त बवंडर कहां फुर्सत देता
जवाब देंहटाएंज़िंदगी पल-भर भी सोई है कब
...वाह