जो जायज़-ओ-वाज़िब लगे बेशक़ तामील करो
श्याम बिहारी श्यामल
हर क़वायद का जिसने खूब मज़ाक उड़ाया था
मंज़र बदलते सामने पहले वही आया था
कहां गया उसका वह अंदाज़-ए-मखौल स्याह
कैसे कालिख चेहरे से भला मिटा पाया था
कहां कुछ पता था आज दलील-ए-मुखालफत का
माशाअल्लाह क़सीदे नायाब वह लाया था
इब्न-ए-आदम बदल सकता है इस तरह सूरत
हालात ने यह हाल हमें यहां क्या दिखाया था
जो जायज़-ओ-वाज़िब लगे बेशक़ तामील करो
श्यामल रंगत-ए-वक़्त ने अब यही सिखाया था
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