अज़ीज़ था अज़ीम था वह शख्स जो तैयब खान था
श्याम बिहारी श्यामल
परकटी एक आंधी औ' ठिठका हुआ तूफ़ान था
अज़ीज़ था अज़ीम था वह शख्स जो तैयब खान था
यूं ही नहीं रखता था नाक पर हर वक़्त गुस्सा
उसका हर सवाल संजीदा था सभी को भान था
बहुत मुश्किल था उसे रोकना रूठने से अक्सर
लेकिन यह भी कि उसे मनाना बिल्कुल आसान था
नब्बे का दौर वह शमीम-ओ-तैयब से लैस-सा
वाक़यात कई धनबाद में अब भी जिनका निशान था
गोकि तारीख़-ए-अदब को यह भनक थी भी कि नहीं
शख्स ऐसा गुजरा जिसका हर लफ्ज़ बस बयान था
श्यामल ज़ंग-ए-इन्साफ लड़ता रहा बेआवाज़
ज़हां-ए-लफ्ज़ वह शख्स पूरा आन-बान-शान था
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (03-03-2019) को "वीर अभिनन्दन ! हार्दिक अभिनन्दन" (चर्चा अंक-3263) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर प्रस्तुति
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