हम बताएं अपनी बख्त़-ओ-फितरत अब यहां
श्याम बिहारी श्यामल
गमो, तुम्हारी लाचारी खूब समझते हैं
यूं ही नहीं हम तुम्हें ग़ज़ल में बदलते हैं
सन्नाटो दबे पाँव नहीं, हक़-ओ-अदब से आ
अदबक़दा में तेरा इश्तक़बाल करते हैं
बेबसी-ए-वज़ूद जानते हैं हम हरेक की
होने न होने की बेइख्तियारी समझते हैं
हम बताएं अपनी बख्त़-ओ-फितरत अब यहां
बेबस-ओ-अफ़सुर्दा से हम प्यार करते हैं
इसलिए जब आ तो खुद को हमलावर न समझ
बाख़बर रहो ज़ज़्ब यहीं अल्फाज़ बनते हैं
नग्म-ओ-अश'आर की दुनिया यह ऐसी जहां
अज़ाब-ओ-खामोशी सब खुशरंग ढलते हैं
श्यामल नाम ज़रूरी नहीं कि हो याद तुम्हें
कुछ लोग यहां हैं जो मुझे शायर कहते हैं
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अदबक़दा = साहित्य का घर
इश्तक़बाल = स्वागत
बेबसी-ए-वज़ूद = अस्तित्व की विवशता
बेइख्तियारी = असहाय दशा
ज़ज़्ब = भावना
बख्त़ = सौभाग्य
बेबस-ओ-अफ़सुर्दा = विवश और उदास
अल्फाज़ = शब्द
अज़ाब = पीड़ा
हम बताएं अपनी बख्त़-ओ-फितरत अब यहां
जवाब देंहटाएंबेबस-ओ-अफ़सुर्दा से हम प्यार करते हैं
...वाह