बाग उदास, बागवान बाग-बाग है
श्याम बिहारी श्यामल
पल-पल भिगो रही, कैसी यह आग है
लपटों से छू रहा, ग़ज़ब यह राग है
देखते ही देखते अक्श निगल गया
बहुत शोर है आईना बेदाग़ है
पहिया घूम जो रहा बढ़ता क्यों नहीं
आप कहते हैं बहुत भागमभाग है
न कुछ उसने कहा ना कुछ हमने सुना
पता चला यही गुफ्तगू बेलाग है
श्यामल यह मंज़र बहुत दर्दनाक है
बाग उदास, बागवान बाग-बाग है
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