हर गांव जैसे मुर्दों का था टीला
श्याम बिहारी श्यामल
सरेसफ़र हुज़ूम-ए-फ़क़ीर था मिला
यह तो ठगों का मुसलसल था क़ाफ़िला
उन्हें यकीं लूटेंगे यकीं-ए-ज़हां
सो लिबास-ए-पीर हरेक था निकला
दीन-ओ-ईमान जुबां ख़ुदा का वास्ता
फ़रेब का उनके लंबा था सिलसिला
आसपास कुछ लोग बेशक़ थे वाक़िफ़
पर किसी को कहां था फुर्सत-ए-गिला
श्यामल यह हाल था दुनिया का अब तो
हर गांव जैसे मुर्दों का था टीला
वाह 👌👌
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