पेशतर धुंध क्यों अब भी हरदम
श्याम बिहारी श्यामल
इस क़दर भी कैसे चश्म-ए-गम है
समंदर इससे कितना यहां कम है
ज़माने ने बदले हैं रंग सारे
पेशतर धुंध क्यों अब भी हरदम है
अब्र-ए-ऐश बेशक़ बेहिसाब जब
दम-ए-ज़िंदगी क्यों आखिर अदम है
क्या-क्या नहीं कर रही है मशीं यहां
सुकूं-ए-दिल कहां ज़ोर-ए-इलम है
दौर-ए-अब्तर नज्र उल्फ़त श्यामल
अमलन अभी भी आब-ए-ज़मज़म है
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अब्र = बादल
अदम = अस्तित्वहीन
इलम = इल्म, ज्ञान, विज्ञान
अब्तर = बिखरा हुआ
अमलन = सत्यता पूर्वक
जवाब देंहटाएंअब्र-ए-ऐश बेशक़ बेहिसाब जब
दम-ए-ज़िंदगी क्यों आखिर अदम है...वाह