बाज़ार की उन आंखों को पढ़े कौन
श्याम बिहारी श्यामल
महाकवि रहीम का वह और ही ज़माना था
अब तो हीरे को मोल खुद ही बताना था
दौर कोयले का था यह, होड़ कालिख से थी
भारी मुश्किल अब साख को बचा पाना था
चमक कारखाने में ढले की तेज थी बहुत
फ़र्क-ए-असल-नक़ल यहां किसे बताना था
बड़ा कठिन था अब भी रहना मुसलसल हीरा
लाख नकारते रहे पर वही निशाना था
श्यामल बाज़ार की उन आंखों को पढ़े कौन
रंग-ए-फितरत जिनमें आना न जाना था
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