उम्र की सुई पल-भर कहां थमती 
श्याम बिहारी श्यामल 
पल-पल नज़ारा करती नया चलती 
क़ुदरत क्या सोच अमल किया करती
अभी जो जन्मा अगले पल पुराना 
उम्र की सुई पल-भर कहां थमती 
प्यास-भूख यह या हवस-जैसी चीज़ 
हर सिम्त हर पल शोर नया रचती
रद्दोबदल आदत या जुनूं कोई 
लम्हे सारे ग़ज़ब ताज़े गढ़ती
हर क़दम सामने अनदेखा श्यामल 
ग़र नहीं मुमकिन, बात कहां बनती 

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