आस्मां से क्या सीधे यहां आया है
श्याम बिहारी श्यामल
कद एक ऊंचा हमने गढ़ाया है 
मंजर को महज फौरी सजाया है  
खुदा है कि नहीं या कहां-कैसा है 
बूत को इन सवालों से बचाया है
सवाल वजूदी, जो हैं औ' रहेंगे 
मंजर को बस खुशरंग बनाया है 
इल्म-ओ-मौशिकी, अदब व तवारीख
आस्मां से क्या सीधे यहां आया है
श्यामल तवज्जो कि तस्वीर हो सुघड़
चश्मसुकूं वह, जो हमने पाया है

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