क्या ज़रूरी है हर सिम्त आँखों में ही खुले
श्याम बिहारी श्यामल
सुखन-ए-ज़िंदगी अब तो दुना चाहता हूँ
चांद ज़रा झुको तुम्हें छूना चाहता हूँ
देखा है कि सितारे खूब खेलते तुम से
उन पर नग्म फिर एक गुनगुना चाहता हूँ
जो लौटे तुमसे मिलके.. उनसे कुट्टी मैं
उन्हें थमाना आज झुनझुना चाहता हूँ
क्या ज़रूरी है हर सिम्त आँखों में ही खुले
शोर, हटो.. लम्हा एक सूना चाहता हूँ
श्यामल सब्र-ए-अब्र सब अपनी जगह ठीक
आस्मां मैं कब से भरा, चूना चाहता हूँ
जो लौटे तुमसे मिलके.. उनसे कुट्टी मैं
जवाब देंहटाएंउन्हें थमाना आज झुनझुना चाहता हूँ ...गजब