अल्फाज़ में आग असल भरोगे क्या
श्याम बिहारी श्यामल
साथी, बन कर समंदर करोगे क्या
आब-ए-तर भी प्यासा मरोगे क्या
भूलो मत दुनिया बदलने का ख्व़ाब
भला इससे भी कभी मुकरोगे क्या
राह-ए-कोशिश तो खुली है पूरी
नज़रंदाज़ करके ही चलोगे क्या
सरे ज़ंग बैठ गए जो दिल थामे
यार, तुम भी ऐसे ही डरोगे क्या
श्यामल होने का मतलब तो समझो
अल्फाज़ में आग असल भरोगे क्या
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