श्याम बिहारी श्यामल 
अब जब सोचूं तो अक़ीदत की तरह 
जब भी अब लिखूं तो इबादत की तरह
क्या है यह दरपेश ज़माने में जो 
सामने कुछ अक्सर ख़यानत की तरह 
होड़ कहूं या सीधे-सीधे साज़िश 
कहां है उसमें कुछ फिरासत की तरह 
बात जब बोले ऊँची आवाज़ में 
अल्फाज़ दिखा करें मलामत की तरह 
इस-उस के जैसा होना यहां किसे 
श्यामल को तो रहना श्यामल की तरह 
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ख़यानत = चोरी 
फिरासत = समझदारी 
मलामत = निंदा 

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