ग़ज़ल को बख्शी है उसने नई-नई शक्लें
श्याम बिहारी श्यामल
वक़्त ने तो अपने रोज़मर्रे को अंजाम-भर दिया है
तालीम ने नया चेहरा उसके मुंह पर धर दिया है
हिलने लगी वह जुबां जो पहले अब से कभी नहीं खुली
ज़हर वालों को बेज़ुबानी का उसी ने तो डर दिया है
इधर बीच ग़ज़ल को बख्शी है उसने नई-नई शक्लें
जहां कभी ज़ुल्मत थी एक-एक वहां सहर दिया है
कैसे कर गुजरा अबके वह क़रामातें ऐसी-ऐसी
घर को उसने ज़न्नत और ज़न्नत को घर कर दिया है
श्यामल होने या नहीं होने से कोई फ़र्क भला क्या
नए-नयों ने हर इशारा ज़माने से पेशतर लिया है
जवाब देंहटाएंकैसे कर गुजरा अबके वह क़रामातें ऐसी-ऐसी
घर को उसने ज़न्नत और ज़न्नत को घर कर दिया है
लाजवाब 👌👌 क्या बात
जवाब देंहटाएं