श्याम बिहारी श्यामल
साज़-ए-दिल ज़िंदगी बज रही है शब-ओ-रोज़ यहां
तरन्नुम-ए-रूह ग़ज़ल यह, मानी न कोई खोज यहां
हांक सुन कर चले आते हैं अल्फाज़ दौड़े-दौड़े
दिल से करते एहतराम उनका सुखन-ओ-सोज़ यहां
लहरा रही आस्मान तक जो, वह है खुशबू-ए-ज़मीं
कौन दे हिसाब आख़िर फ़लक कितने ज़मीनदोज़ यहां
गुल तो गुम हैं, आ रही है खारों से भी महक वही
दर्द फ़र्द-ओ-फ़ाज़िल कहां, नज़ारा यह इमरोज़ यहां
ज़हां-ए-इश्क़ है यह, इसके ग़ज़ब क़ाईदे सारे
श्यामल वक़्त कठपुतली है, सदियां बदलतीं रोज़ यहां
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साज़-ए-दिल = दिल के वाद्ययंत्र पर
शब-ओ-रोज़ = रात और दिन
तरन्नुम-ए-रूह = आत्मा की लय
सुखन-ओ-सोज़ = शाइरी और अथाह वेदना
फ़लक = आसमान
फ़र्द = अकेला
फ़ाज़िल = आवश्यकता से अधिक
नज़ारा = सुंदर दृश्य
इमरोज़ = आज
ज़हां-ए-इश्क़ = प्रेम का संसार
रोज़ = प्रतिदिन
यहां
जवाब देंहटाएंगुल तो गुम हैं, आ रही है खारों से भी महक वही
दर्द फ़र्द-ओ-फ़ाज़िल कहां, नज़ारा यह इमरोज़ यहां …क्या बात