फ़िक्र नहीं कि किधर से कौन लगा रहा निशाने
श्याम बिहारी श्यामल
आग से भीगा तो कभी चांदनी से सना है
पता तो चले दिल यह किस मिट्टी का बना है
फ़िक्र नहीं कि किधर से कौन लगा रहा निशाने
दिल-ओ-दिमाग हर पल रंग-ए-अब्र घना है
कितनी ठोकर कितने आघात कैसे हालात
हर रंज़-ओ-गम हवा, वह मोर्चे पर तना है
कहावत-मुहावरे सब सांसत में पहली बार
उधर सहमा-सा भांड़ इधर अकेला चना है
उसे किसने समझाया है क्या श्यामल का मतलब
अज़ीज़ वह कई दिन से बहुत अब अनमना है
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रंग-ए-अब्र = बादल का रंग
रंज़-ओ-गम = नाराज़गी और दु:ख
अनमना = खिन्न
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