आतिश क्यों बेताब है बर्फ़ हो जाने को
श्याम बिहारी श्यामल
दिल की निज़ामत का क्या नहीं मंज़र देखा
धधकती बस्ती देखी बुलबुलों का घर देखा
फ़लसफ़-ओ-दलील सब के सब मुल्तवी मिले
आसमां सरेखाक़ औ' ज़मीं को ऊपर देखा
ग़ज़ब यह समंदर था गुलों से भरा-पूरा
एक और ही ज़हां को गुलज़ार अन्दर देखा
आतिश क्यों बेताब है बर्फ़ हो जाने को
हल्के झोंकों से पिघलता हुआ पत्थर देखा
ग़ज़ल जब ग़मगीन तब श्यामल हंसता हुआ
यह क्या मैंने इधर देखा औ' क्या उधर देखा
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