ज़र्रे-ज़र्रे में रवां  चांदनी-सी ज़ान
श्याम बिहारी श्यामल
शज़र-ए-ज़न्नत यह पल-पल नए अरमान 
मोहब्बत यह, जवां हर लम्ह इसकी शान 
आया कब एक मोरमुकुट बंसीवाला 
फीकी नहीं पड़ी आज तक मोहिनी तान  
दिलदेश यह क़ाईदे यहां अपने ज़ुदा  
चांद-सूरज अब तक इस राह से अनजान 
तकते, सांस लेते नदी-परबत सब यहां 
ज़र्रे-ज़र्रे में रवां  चांदनी-सी ज़ान 
कौन श्यामल यहां, किसको नहीं यह पता
ग़ज़ल-ए-गुल यह, खुशबू इसकी उनवान 
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शज़र-ए-ज़न्नत = स्वर्ग का पेड़
क़ाईदे = नियम
ज़र्रे-ज़र्रे = कण-कण
रवां = व्याप्त
उनवान = शीर्षक
शज़र-ए-ज़न्नत = स्वर्ग का पेड़
क़ाईदे = नियम
ज़र्रे-ज़र्रे = कण-कण
रवां = व्याप्त
उनवान = शीर्षक

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फीकी नहीं पड़ी आज तक मोहिनी तान … वाह वाह