ज़हां में जहां कहीं भी टूटता है दम कोई
श्याम बिहारी श्यामल
मूरख मौत समझती है सब खत्म करती है
जिंदगी तो मुक़ाम-भर फ़लसफ़न बदलती है
ज़हां में जहां कहीं भी टूटता है दम कोई
नई रंगत तुरंत अनेक शक्लें धरती है
ठांव-ए-मसान-ओ-क़ब्रिस्तां नज़र तो डालिए
अनगिन दूब 'ज़िंदगी जिंदाबाद' कहती है
ग़र ज़िंदा है मनहूस वह तो सच यह ज़ाहिरन
रहम-ए-ज़ान के बूते सब चाल चलती है
श्यामल ज़ाहिल वफ़ात को इतना भी नहीं पता
क़ायदा-ए-क़ायनात वह बेबस ढलती है
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फ़लसफ़न = फ़लसफ़े के अनुसार
ज़हां = दुनिया
ठांव = जगह
रहम-ए-ज़ान = जीवन की दया पर
वफ़ात = मौत
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