कौंध-ए-दिल आतिशी ग़ज़ब, खुशबू की तरह अश'आर


गुल-ए-ज़ज़्ब नायाब, मौलवी कैसे खोजे मानी

श्याम बिहारी श्यामल 


शिकस्त-ए-संगदिली का मंज़र अज़ब बनते देखा  
जानिब-ए-कांच पत्थर को हवा में पिघलते देखा 

रंज़-ए-शीशा था या इंक़लाब-ए-इश्क़, या ख़ुदा 
पहले कहां किसने, संग को मोम में ढलते देखा 

कौंध-ए-दिल आतिशी ग़ज़ब, खुशबू की तरह अश'आर 
आक़िल पसीने-पसीने, आशिक़ को महकते देखा 

उलझन-सुलझनों का यह कैसा है अफ़साना लोगो 
महक को हर सिम्त सुलझते, गुलों को उलझते देखा 

गुल-ए-ज़ज़्ब नायाब, मौलवी कैसे खोजे मानी 
श्यामल गुंचा-ए-जीस्त-सा हर नग्मा खुलते देखा  


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शिकस्त-ए-संगदिली = पत्थरदिली की हार 
जानिब-ए-कांच = कांच की ओर चला 
रंज़-ए-शीशा = शीशे का गुस्सा 
इंक़लाब-ए-इश्क़ = प्रेम की क्रांति 
आतिशी ग़ज़ब = अद्भुत आग्नेय 
आक़िल = बुद्धिमान 
सिम्त = दिशा 
गुल-ए-ज़ज़्ब = भावनाओं के फूल 
गुंचा-ए-जीस्त = ज़िंदगी की कली 





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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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