अश्क़ उनका सजावटी था
श्याम बिहारी श्यामल
बियाबां भीतर से, ऊपर से बसावटी था
मुक़ाम-ए-तरक्क़ी यह पूरा बनावटी था
गुब्बारे अभी उड़ाए गए रंग-बिरंगे
ज़ाहिरन यह खेल सारा उनका दिखावटी था
सच जो आ खड़ा हुआ ऐन हमारे सामने
थोड़ा-सा नहीं, यह पूरी तरह मिलावटी था
क़िस्सा हमारा सुनकर डबडबा गईं आंखें
भेद बाद में खुला, अश्क़ उनका सजावटी था
फिर इंद्रप्रस्थ औ' फिर वही हस्तिनापुर था
श्यामल अंदाज़-ए-आब फर्श जमावटी था
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