देखा किए तेरे सलूक़-ओ-आमाल हज़ारहां
श्याम बिहारी श्यामल
ज़िंदगी क़दम-क़दम न तौल, यह बदइम्तहानी है
हरक़त यह दिमागी दिवालियेपन की निशानी है
रास्ता रोककर जांचने की अदा बेशक़ नायाब
अंदाज़-ए-अंजाम-हज़म में भी कहां सानी है
देखा किए हज़ारहां वह सब सलूक़-ओ-आमाल
रंग-बदली की तेरी एक से एक कहानी है
मौक़े पर दम साधने में कोई मुकाबला नहीं
मासूम दिखती जिस क़दर असल उतनी सयानी है
ग़नीमत यही, अब भी तुममें है सुनने का माद्दा
श्यामल यह कम नहीं उन आंखों में अभी पानी है
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