ज़माने को लगता शायर यह सोया है 
श्याम बिहारी श्यामल 
ज़रा-सा रंग क्या बिखरा, आ गए झोंके 
हवाओं को बदनीयती से कौन रोके 
कैसे मिल जाती है हर भनक पल भर में 
कौन पहुंचा रहा मंज़र सब ढो-ढो के 
किस बेमेल का मेल किससे, खेल किसका 
वक़्त किस्सा कहता कानों में रो-रो के 
ज़माने को लगता शायर यह सोया है 
बा-खबर मैं सबसे, मुमकिन यह क्या सो के  
कोई मेरी न सुने मैं तो पर सब सुनूं 
अल्फाज़ धड़कते ग़ज़ल में श्यामल हो के 

0 comments:
एक टिप्पणी भेजें