रंग कितने अंधेरे के भीतर
श्याम बिहारी श्यामल 
ख्व़ाब देखता हमें, गीत गाता है मुझे 
ग़ज़ल इस फ़ज़ल पर   शुक्रिया कहूं मैं तुझे
जलना ही जलना, हर पल केवल सिराना
अदा-ए-अज़ाब बिरला ही कोई बूझे
सल्तनत-ए-दर्द अब्तर यह क्या अमानत 
आब है कि जोश-ए-आतिश कभी ना बुझे 
ज़ुल्म-ए-ज़ुल्मत अज़ब किस क़दर यह अज़ीज़ 
ज़ानिब-ए-चश्म सब, कुछ भी कहीं न सूझे 
श्यामल रंग कितने अंधेरे के भीतर  
तपिश-ओ-तपन ग़ज़ब, शाइर क्यों यूं रीझे 
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फ़ज़ल = कृपा 
सिराना = समाप्त होना, ठंडा होना 
अज़ाब = पीड़ा 
अदा-ए-अज़ाब = दुःख की सुन्दरता 
अब्तर = नष्ट, बिखरा हुआ 
आब = पानी 
जोश-ए-आतिश = आग का उत्साह 
ज़ुल्म-ए-ज़ुल्मत = अंधेरे का अत्याचार 
ज़ानिब-ए-चश्म = आंखों की तरफ 
तपिश-ओ-तपन = गर्मी और तपा हुआ 

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