सुख़नवर का हाशिए क्यों प्यार
श्याम बिहारी श्यामल
गम ज़माने का, रोए यह दिल क्यों ज़ार-ज़ार
कैसा यह रिश्ता, ग़ज़ल ऐसी क्यों गमख्वार
कब हो गए किस तरह ज़ज्बात सारे साझा
शाइरी पूछ रही, यूं बनाया क्यों लाचार
ले समंदर-ए-दर्द शाइर यह कहां जाए
बेलगाम अब ऐसा आसपास क्यों बाज़ार
दाद-ओ-तारीफ़ की बेशक़ कमी कभी नहीं
सवाल अब यह, सुख़नवर का हाशिए क्यों प्यार
श्यामल हर सांस हर लम्हा करे जो क़ुर्बान
वही यहां अनसुना, अनदेखा क्यों क़लमकार
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गमख्वार = हमदर्द, सहिष्णु
सुख़नवर = कवि
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