आंखों को ही क़ुबूल कहां दिन-रात ग़मज़दा रोना


ख़ुशी के नन्हे संदल को क्यों न खोज निकालें अभी

श्याम बिहारी श्यामल 

सूरज को मंज़ूर कब किसी दिन ग़ैरहाज़िर होना 
अंधेरे को मयस्सर कहां हर वक़्त हरेक कोना

ग़मों को खोद-खोद कर जगाने से फ़ायदा है क्या
आंखों को ही क़ुबूल कहां दिन-रात ग़मज़दा रोना

भरम सब पुराना दिल-ओ-दिमाग से खारिज़ हो अभी 
कतई ज़माने को कोई तलब नहीं रोना-धोना 

ख़ुशी के नन्हे संदल को क्यों न खोज निकालें अभी
अनमोल मौक़ा-ए-अत्रकारी यह भला क्यों खोना

श्यामल एहतराम-ए-आम तय नग्मात ऐसे भी 
चांद जिनमें हंस कर ढरकाता हो आब-ए-सोना 








Share on Google Plus

About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें