दर्द बजता रहता तो क़लम कुछ नहीं कहती


उदासी-बेबसी कभी उस पर नहीं जंचती

श्याम बिहारी श्यामल 

उसकी इससे औ' इसकी उससे नहीं बनती
मेरी तो खुद से यहां आजकल ठनी रहती

भीतर खमखमाया हो तो वह अच्छा लगता
उदासी-बेबसी कभी उस पर नहीं जंचती 

अज़ाब हल्का होते ज़ुबान खोल लेती है 
दर्द बजता रहता तो क़लम कुछ नहीं कहती 

यह गुल-ए-दिल है ज़नाब संभाल कर रखिए 
ग़ज़ल कहीं किसी कारख़ाने में नहीं ढलती  

अफसाना-ओ-उपन्यास ठमके खड़े कब से 
रंगत-ए-नज़्म है सिर से जो नहीं उतरती

श्यामल औ' नींद में आंकड़ा अब छत्तीस का 
खुदी-बेखुदी में रिश्तेदारी कब तक चलती 

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अज़ाब = पीड़ा 




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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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2 comments:


  1. यह गुल-ए-दिल है ज़नाब संभाल कर रखिए
    ग़ज़ल कहीं किसी कारख़ाने में नहीं ढलती …वाह वाह

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  2. अज़ाब हल्का होते ज़ुबान खोल लेती है
    दर्द बजता रहता तो क़लम कुछ नहीं कहती
    …वाह

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