वक़्त शातिर है बदलता पल-पल नक़ाब
श्याम बिहारी श्यामल
ओ ज़माने, क़िरदार नेक यह निभाना
'मैं' खो गया है कहीं दिखे तो पठाना
दिल तो नहीं, वह क़द का छोटा है ज़रा
मुश्किल है बहुत भीड़ से उसे बचाना
वक़्त शातिर है बदलता पल-पल नक़ाब
जाने कब ठोंक दे एक नया बहाना
गोकि कभी नीयत ठीक नहीं लगी उसकी
जारी पहले से उसका नज़र गड़ाना
ऊब कर गया हो मुफ़लिसी से शायद
हालात-ए-शायर अब तुमसे क्या छुपाना
कुछ कमी न रहने देंगे वह आए तो
हो सके तो मेरा वादा यह बताना
रिश्ता-ए-ज़माना-ओ-वक़्त अज़ब-ग़ज़ब
श्यामल आसां कहां उन्हें आज़माना
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