लाखों साल से बेहोश पड़ीं कई नस्लें
श्याम बिहारी श्यामल
नीयत-ए-वक़्त है ज़ाहिर, भरमूं तो क्यों
उसकी सब औक़ात भी पता, डरूं तो क्यों
क़ायदा-ए-अज़ल जो, अज़ब फ़ितरत उसकी
आख़िर अज़ब-ग़ज़ब से झगड़ता फिरूं क्यों
सूरमा नहीं, औज़ार-ए-क़ायनात वह
किसी बेज़ान मशीन से मैं भिडूं तो क्यों
लाखों साल से बेहोश पड़ीं कई नस्लें
जागा हूं, इश्क़-ए-बेखुदी पडूं तो क्यों
श्यामल को देख रही दुनिया गाता हुआ
खुशग़ज़ल से ऐसे में उल्टे लडूं तो क्यों
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क़ायदा-ए-अज़ल = सृष्टि के नियम
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
लाजवाब गजल....
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